डाकू की कहानी
कहानी प्रारंभ :- यह कहानी एक डाकू की है जो किसी जमाने में जंगलों और पहाड़ियों में डाका डालता था। उसका नाम था राजू राजू का चेहरा डरावना था आंखों में खौफ था और उसकी खौफनाक दहाड़ सुनकर लोग कांपते थे वह जंगल के सबसे घने हिस्से में रहता था जहां कोई भी नहीं जाता था। राजू का जीवन अपराध और हिंसा से भरा हुआ था लेकिन उसके भीतर एक छिपी हुई इंसानियत भी थी जिसे वह खुद समझ नहीं पाता था।
एक दिन राजू जंगल के एक छोटे से गांव में घुस गया गांव के लोग डर के मारे अपने घरों में छिप गए। लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ गांव के सबसे छोटे लड़के सुमित ने राजू को आते हुए देखा वह डर के बजाय राजू के पास गया और उसके पैरों में गिरकर बोला कृपया हमें मत मारो। हमारे पास कुछ भी नहीं है लेकिन अगर तुम चाहो तो हम तुम्हें खाना दे सकते हैं।
राजू ने उसे घूरा और बोला तुम लोग मेरे सामने क्यों आए हो मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता।
लेकिन सुमित की आंखों में जो डर नहीं था उसने राजू को चौंका दिया वह कच्चे रास्ते से आते हुए एक छोटे से झोपड़े के पास पहुंचा और अंदर से कुछ रोटियां और दाल निकाल लाया यह हमारे पास है लेकिन यह तुम्हारे लिए है सुमित ने कहा।
राजू चुप रहा उसकी आंखों में कुछ अजनबी सा दर्द था उसने रोटियां और दाल ले लीं लेकिन उसका मन सुमित की बातों में कहीं खो गया था वह समझ नहीं पा रहा था कि यह लड़का जो डर के बजाय उसे प्यार और दया दिखा रहा था क्यों ऐसा कर रहा था आमतौर पर लोग उससे डरते थे लेकिन सुमित का दिल इतना बड़ा था कि उसने डाकू को भी इंसान बना दिया।
राजू उस रात वहीं रुका और सुमित के परिवार के साथ खाने की मेज़ पर बैठा यह उसकी ज़िंदगी का पहला ऐसा अनुभव था जब उसे किसी ने शत्रु नहीं बल्कि दोस्त की तरह देखा उस रात के बाद से राजू ने डाकू की ज़िंदगी छोड़ दी उसने जंगलों में फिर कभी डाका नहीं डाला और गांवों में भी उसे कोई नहीं डरा वह सुमित के गांव में रहने आया और वहां के लोगों के साथ मेहनत करने लगा धीरे-धीरे वह न सिर्फ एक डाकू बल्कि एक अच्छे इंसान के रूप में पहचानने जाने लगा।
सुमित की सरलता और सच्चाई ने राजू की ज़िंदगी को बदल दिया था उसने समझ लिया कि असल ताकत डर में नहीं बल्कि प्यार और दया में होती है और इस तरह से एक डाकू जो कभी भय फैलाने के लिए जाना जाता था अब एक दोस्त और मददगार बन गया
निष्कर्ष :-
यह कहानी हमें सिखाती है कि हर इंसान में अच्छाई छिपी होती है बस उसे पहचानने और स्वीकारने की जरूरत होती है।
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