हिंदी कहानी
कहानी: "अंधेरे में एक चिराग"
सर्दियों की एक ठंडी रात थी। गांव के किनारे बनी पुरानी हवेली में रहने वाली विधवा चाची, जिन्हें सब "अम्मा" कहते थे, अपने छोटे से आंगन में बैठी थीं। उनके हाथ में एक मिट्टी का दीया था, जिसकी लौ हवा के झोंकों से बार-बार लड़खड़ा रही थी। पास ही उनका पोता, सात साल का मंगल, अपनी छोटी-सी किताब लिए बैठा था। मंगल की आंखों में चमक थी, पर चेहरे पर उदासी।
"अम्मा, आप हर रात ये दीया क्यों जलाती हो? बाबूजी तो कभी आए नहीं," मंगल ने मासूमियत से पूछा।
अम्मा की आंखें नम हो आईं। उन्होंने दीये की लौ को थोड़ा सहलाया और बोलीं, "बेटा, ये दीया मेरे इंतजार का सबूत है। तुम्हारे बाबूजी गए तो हैं, पर मेरे दिल में उनकी सांसें अभी भी चलती हैं। ये लौ जलती है तो लगता है, वो कहीं दूर से देख रहे होंगे।"
मंगल चुप हो गया। उसे समझ नहीं आया कि इंतजार का मतलब क्या होता है। उसके लिए तो जिंदगी बस स्कूल, खेल और अम्मा की गोद थी। पर उस रात कुछ बदला। हवेली के बाहर से एक हल्की-सी आहट हुई। मंगल ने चौंककर देखा, पर अंधेरे में कुछ दिखा नहीं। अम्मा ने मुस्कुराकर कहा, "हवा है, बेटा। डर मत।"
लेकिन अगली सुबह गांव में हलचल मच गई। किसी ने हवेली के पास एक पुराना लिफाफा देखा था, जिस पर धूल जमी थी। मंगल दौड़कर उसे उठा लाया। लिफाफे पर लिखा था, "अम्मा के लिए।" अंदर एक चिट्ठी थी, जिसकी स्याही समय के साथ फीकी पड़ चुकी थी। लिखा था, "मैं लौटने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे माफ कर देना। - तुम्हारा रामू।"
अम्मा ने चिट्ठी पढ़ी और उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली। मंगल ने पहली बार अपनी अम्मा को इतना रोते देखा। उसने पूछा, "अम्मा, बाबूजी आएंगे न अब?" अम्मा ने उसे सीने से लगाया और बोलीं, "शायद नहीं, बेटा। पर ये चिट्ठी उनके लौटने से भी बड़ी है।"
उस दिन से मंगल ने हर रात दीया जलाना शुरू कर दिया। वो कहता, "अम्मा, अब मैं आपका इंतजार बनूंगा।" गांव वालों के लिए ये कहानी एक मिसाल बन गई - कि प्यार और उम्मीद कभी खत्म नहीं होती, चाहे वक्त कितना भी बीत जाए।
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