मजबूत दोस्ती की कहानी
परिचय:रमेश और सुरेश की दोस्ती गाँव के उस पुराने बरगद के पेड़ की तरह थी, जिसकी जड़ें धरती के अंदर तक फैली हों। दोनों की उम्र बमुश्किल पंद्रह साल थी, लेकिन उनका बचपन खेतों की मेड़ों पर दौड़ते-कूदते, नदी में मछलियाँ पकड़ते और स्कूल के बाद गुड़ की डली चुराने में बीतता था। वे जानते थे कि गाँव की मिट्टी की खुशबू और उनकी दोस्ती कभी अलग नहीं हो सकती... लेकिन उस साल की गर्मी ने सब कुछ बदल दिया।
अकाल का साया
उस साल बारिश ने जैसे गाँव को भुला ही दिया। आसमान साफ़ था, लेकिन धरती की चटकती मिट्टी रोज़ एक सवाल पूछती थी, "कब तक?" रमेश के पिता की फसल मुरझा गई थी, और सुरेश की माँ का आँगन सूखे बर्तनों से भर गया। एक शाम, दोनों दोस्त पेड़ के नीचे बैठे थे।"कल स्कूल की फीस जमा करनी है," रमेश ने पत्थर को लात मारते हुए कहा।
"मेरे पापा ने कहा, अगर बारिश नहीं हुई तो हम शहर चले जाएँगे," सुरेश की आँखें नम थीं।
उसी रात, रमेश के दिमाग में एक विचार कौंधा। उसने सुरेश को झटका देकर जगाया, "सुना है पहाड़ी पर एक बूढ़ा साधु रहता है। वो बारिश लाना जानता है!
"
पहाड़ी की यात्रा और रहस्य
दोनों ने चुपके से रोटियाँ बाँधीं और पहाड़ी की ओर निकल पड़े। रास्ते में काँटों ने उनके पैर छील दिए, लेकिन उनकी हिम्मत नहीं टूटी। तीन दिन बाद, वे साधु की कुटिया तक पहुँचे। साधु ने उनकी कहानी सुनी और मुस्कुराया, "बारिश तो तुम्हारे दिल में है, बच्चो। जाओ, गाँव के पूर्वी कोने की मिट्टी खोदो। वहाँ तुम्हें जो मिलेगा, उसे सबके साथ बाँटना।"वापस लौटकर, दोनों ने गाँव वालों को इकट्ठा किया। खुदाई शुरू हुई... और धरती के नीचे से पानी का एक सोता फूट निकला! गाँव वालों ने मिलकर एक कुआँ बनाया। कुछ हफ़्तों बाद, आसमान ने भी दया दिखाई। बारिश की बूंदों ने न सिर्फ़ खेतों को, बल्कि हर दिल को तर किया।
दोस्ती की जीत
आज, गाँव का वह कुआँ "दोस्ती कुँआ" के नाम से जाना जाता है। रमेश और सुरेश अब शहर में पढ़ते हैं, लेकिन हर साल बारिश के मौसम में गाँव आकर उस पेड़ के नीचे बैठते हैं। उनकी कहानी याद दिलाती है कि दोस्ती और सामुदायिक एकता किसी भी संकट को हरा सकती है।कहानी से सीख
इस कहानी की खास बात यह है कि यह न सिर्फ़ मनोरंजन करती है, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य और सामाजिक एकता का संदेश भी देती है। अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो हमारे ब्लॉग पर और भी हिंदी कहानियाँ पढ़ें: