चुप्पी का श्राप | Hindi Horror Story

InspireSphere
0
हिंदी-डरावनी-कहानी-का-आईना


कहानी:-

यश को उस पुराने हवेली में जाने की कोई जल्दी नहीं थी। पर दादी की वसीयत में लिखा था—"जाओ और उस आईने को तोड़ दो, जो मेरे कमरे में लटका है।" दादी की मृत्यु के बाद, यश अकेला ही उस खंडहर घर पहुँचा। हवा में सन्नाटा था, और दीवारों पर लिखे अजीब निशान... जैसे कोई उन्हें चेतावनी दे रहा हो।


कमरे में प्रवेश करते ही, यश की नज़र उस विशाल आईने पर पड़ी। उसकी चमक अजीब थी—जैसे किसी की साँसें उस पर जमी हों। यश ने हथौड़ा उठाया, तभी आईने में उसकी परछाईं ने अपना सिर हिलाया। "मत तोड़ो मुझे," एक स्त्री की आवाज़ गूँजी। यश का दिल धक से रुक गया। परछाईं अब उसके पीछे नहीं, बल्कि आईने के भीतर खड़ी थी... उसकी आँखों में लाल चिंगारी।


अचानक, आईने से काले हाथ निकले और यश को खींचने लगे। वह चिल्लाया, "मुझे छोड़ दो!" पर हवेली के बाहर बारिश की आवाज़ के सिवा कुछ नहीं सुनाई दिया। अगली सुबह, गाँव वालों ने यश को आईने के सामने जमीन पर पड़ा पाया—उसकी आँखें खुली थीं, पर पुतलियाँ गायब थीं। और आईने में अब हमेशा के लिए एक और परछाईं जुड़ गई...

हिंदी-डरावनी-कहानी-का-आईना


कहानी का विस्तार:-

यश को दादी की वसीयत मिली थी—एक पीली पड़ी चिट्ठी, जिसमें लिखा था: "उस आईने को तोड़ दो... वरना वह तुम्हें तोड़ देगा।" दादी ने अपनी मौत से पहले यश को बुलाया भी नहीं था। शायद इसीलिए, जब वह उस सुनसान हवेली के सामने खड़ा था, तो उसके मन में सवालों का झुंड मँडरा रहा था। हवेली के दरवाज़े पर लटका ताला जंग खा चुका था। यश ने दबे पाँव अंदर कदम रखा।


पहला दिन:

कमरों में धूल के बादल थे। दीवारों पर लकीरें खिंची थीं—जैसे किसी ने नाखूनों से उन्हें रोंद डाला हो। यश ने दादी के कमरे का दरवाज़ा खोला। वहाँ, एक कोने में, विशाल काले फ्रेम वाला आईना लटका था। उसकी सतह पर धब्बे थे, मानो किसी ने उसे खून से साफ़ किया हो। यश ने हथौड़ा निकाला, तभी उसकी नज़र आईने के नीचे पड़ी एक डायरी पर पड़ी। वह दादी की थी।


डायरी का पन्ना:

"आज मैंने उससे बात की... वह मेरी परछाईं में छिपी है। जब भी मैं आईने के सामने से गुज़रती हूँ, वह मेरी आवाज़ की नकल करती है। मैंने पंडित जी से पूछा, तो उन्होंने कहा—'यह आईना नहीं, एक द्वार है। और उस द्वार के पार... कोई और दुनिया है।'"


रात का समय:

यश ने डायरी पढ़ते-पढ़ते आईने की ओर देखा। उसकी परछाईं ने अचानक सिर घुमाया। यश का शरीर स्तब्ध रह गया। परछाईं के होंठ हिले: "तुम्हारी दादी ने मुझे धोखा दिया... उसने वादा किया था कि वह मुझे आज़ाद कर देगी।" यश ने पीछे मुड़कर देखा—कमरा खाली था, पर आईने में परछाईं अब भी उसकी ओर देख रही थी।


दूसरा दिन:

यश ने गाँव के बुजुर्गों से पूछताछ की। एक बूढ़े ने कहा: "तुम्हारी दादी ने यह आईना 1947 में एक साधु से खरीदा था। कहते हैं, यह उन आत्माओं को रोकता है जो मरकर भी शरीर छोड़ना भूल जाते हैं..."

शाम को, यश ने हवेली की छत पर एक टूटी हुई तस्वीर पाई—दादी की तस्वीर, जिसमें उनकी आँखें काली पट्टी से ढँकी थीं।


तीसरी रात:

आईने से आवाज़ आई: "तुम्हारी दादी ने अपनी आँखें मुझे दे दी थीं... अब तुम्हारी बारी है।" यश ने हथौड़ा उठाया, पर आईना अचानक टूट गया। काँच के टुकड़ों में से काला धुआँ निकला और यश के चारों ओर घूमने लगा। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, पर धुएँ ने उसके कानों में फुसफुसाया: "तुम भाग नहीं सकते... मैं तुम्हारे सपनों में हूँ।"


अंत:

अगली सुबह, गाँव वालों ने यश को आईने के सामने बेहोश पाया। उसकी आँखों में केवल सफ़ेद पुतलियाँ थीं—जैसे कोई उन्हें अंदर से खोखला कर गया हो। डॉक्टरों ने कहा, "यह कोई बीमारी नहीं... यह किसी श्राप का असर है।"

उस रात के बाद, हवेली के पास से गुजरने वाले लोग अक्सर एक और आवाज़ सुनते हैं—"क्या तुम मेरी आँखें देखोगे? और जो भी आईने के टुकड़ों को छूता है... उसकी परछाईं कभी नहीं दिखती।

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)