दोस्ती की अनोखी राह
गर्मियों की एक सुबह, छोटे से गाँव नीमगढ़ में धूप की चादर बिछ चुकी थी। आदित्य, जो बारह साल का एक चुलबुला लड़का था, अपने घर के पीछे बहती नदी के किनारे बैठा पत्थरों को उछाल रहा था। उसके मन में बस एक ही ख्याल था—स्कूल के बाद कैसे वह अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलेगा। तभी उसकी नज़र दूर खड़ी एक लड़की पर पड़ी, जो पेड़ के नीचे किताब पढ़ रही थी। वह साक्षी थी, गाँव की नई आई हुई लड़की, जिसके बारे में सब कहते थे कि उसके पिता शहर से यहाँ आकर बस गए हैं।
आदित्य ने उसकी तरफ बढ़ते हुए पूछा, "तुम कौन सी किताब पढ़ रही हो?" साक्षी ने शर्माते हुए किताब का कवर दिखाया—"पंचतंत्र की कहानियाँ"। "अच्छा! यह तो मेरी भी पसंदीदा किताब है," आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा। धीरे-धीरे दोनों में बातचीत बढ़ने लगी। साक्षी ने बताया कि उसके पिता एक शिक्षक थे और वे शहर की भागदौड़ से दूर यहाँ प्रकृति के बीच रहना चाहते थे। आदित्य को यह जानकर हैरानी हुई कि साक्षी को भी क्रिकेट पसंद था।
कुछ ही दिनों में दोनों की दोस्ती गहरी हो गई। वे साथ में नदी किनारे घूमते, पेड़ों पर चढ़ते और कभी-कभी साक्षी आदित्य को पढ़ाई में मदद करती। मगर गाँव के कुछ लोगों को यह दोस्ती पसंद नहीं थी। आदित्य के पिता, जो गाँव के सबसे धनी व्यक्ति थे, ने एक दिन उसे डाँटते हुए कहा, "हमारे परिवार की इज्जत है। तुम एक गरीब लड़की से दोस्ती नहीं कर सकते!" आदित्य का दिल टूट गया, मगर उसने हिम्मत नहीं हारी।
एक दिन गाँव में भयंकर बारिश हुई। नदी उफन गई और आधे गाँव में पानी भर गया। साक्षी का घर, जो नदी के किनारे था, पानी में बहने लगा। आदित्य ने जब यह सुना तो वह बिना सोचे अपने पिता से मदद माँगने पहुँचा। शुरू में उसके पिता ने मना किया, मगर आदित्य के आँसुओं ने उनका दिल पिघला दिया। पूरा गाँव मिलकर साक्षी के परिवार को बचाने पहुँचा।
उस दिन के बाद सबकी सोच बदल गई। आदित्य के पिता ने न सिर्फ साक्षी के परिवार को अपने घर में ठहराया, बल्कि गाँव की पाठशाला बनवाने में भी मदद की, जहाँ साक्षी के पिता शिक्षक बने। दोनों परिवारों की दोस्ती ने गाँव को एक नई सीख दी—"इंसानियत और दोस्ती कभी जाति, धन या हैसियत नहीं देखते।"
आज भी नीमगढ़ के लोग उस घटना को याद करके कहते हैं, "सच्ची मित्रता वही है जो मुश्किलों में खुद को साबित करे।"